Abhishek Ojha
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“मान लीजिए जिसको शेयर बाजार के बारे में इतना बुझाएगा ...उ बैठ के टीवी पर बताएगा कि खुद पैसा बनाएगा ?”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“भारत में सबसे प्रचलित यदि कुछ है तो वो है सड़क किनारे की चाय। पर वो इतनी विशेष इसलिए भी है कि हर दूसरी चाय भिन्न ही होती है! किसी भी दो जगहों पर तुम्हें एक जैसी चाय नहीं मिलेगी। भारत भी ऐसा ही है, सब कुछ एक जैसा होते हुए भी बिल्कुल अलग-अलग। एक-सा पर अपने अंदर अनंतता लिए।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“राजेश जी का भतीजा इंजीनियर है इसलिए राजेशजी उसे “पूरे बकलोल है” कहते। एक दिन बोले - “जानते हैं सर, एक ठो इंजीनियर बंगलउर से पर्ह के हमरे गाँव आया त पूछता का है कि पापा एतना ऊँचा बाँस में झण्डा कईसे लग गया? हम वहीं थे बोले कि भो** के तेरी अम्मा को सीढ़ी लगा के चढ़ाये थे। इंजीनियर सबसे तेज़ तो हमारे गाँव का बैलगाड़ी हाँकने वाला होता है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“अनुराग को लगा जैसे ज़िन्दगी लेबंटी-सी है। चाह है। गोल्डन। थोड़ी खट्टी। थोड़ी मीठी। एक बार जो स्वाद मिला वो दुबारा ढूँढ़ते रहो। वहीं बनाने वाला भी स्वयं दुबारा नहीं बना पाता, ठीक वैसी ही चाह। चाह में किसी को कम दूध, किसी को ज़्यादा, किसी को मीठी, किसी को फीकी। बड़े लोग ब्लैके परेफ़र करते हैं। पता नहीं अच्छा लगता है या हो सकता है कि उनकी किस्मत में ही नहीं होता दूध-शक्कर, भगवान जाने! उसी में किसी को अदरक, लौंग-इलायची और लेमनग्रास भी चाहिए तो किसी को कुछ भी नहीं! संसार का कारण चाह ही तो है - इच्छा वाला।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“इश्क़ भी अजीब है। पता नहीं किसको क्या बना दे। सुकून है। ज़हर है। कोकेन है। बंधन है। मुक्ति है। भांग है। माया है– खुमारी चढ़ने के बाद पता नहीं कौन, कैसी हरकत करने लगे। दुनिया की सबसे आम चीज़ है। सोचो कि क्या है तो कुछ भी तो नहीं। और सोचने लगो तो दुनिया की ऐसी कोई चीज़ नहीं जो उसे परिभाषित न करे। इश्क़ की परिभाषा है, ‘इश्क़’ और ‘है’ के बीच में कोई भी शब्द लिख दो, वही इश्क़ की परिभाषा हो जाएगी!”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“दुनिया में कुछ भी (किसी के लिए) रुकता कहाँ है। परिवर्तित होता रहता है। पत्र बदल जाते हैं। बैटन पास हो जाता है। जगहें बदल जाती हैं। भावनाएँ एक जैसी होती है। अनंत समय का चक्र घूमता रहता है। दुनिया उसी प्रवाह से चलती रहती है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“बुद्धिज़्म (बौद्ध धर्म) सनातन का वो बेटा है जो विदेश में जाकर बस गया। अच्छा नाम कमाया।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“लड़कियों को घूरना इस देश की उन आदतों में से है जिसे लोग असभ्य तक नहीं मानते। आपको तो लड़के-लड़की-औरत-मर्द-बच्चा-बूतरू सब घूरेगा। उत्सुकता से, प्रश्नवाचक दृष्टि से, विस्मय से, बुरी नज़र से… और साथ में जो प्रश्न कर सकते हैं वो भी करेंगे। […] इसके लिए तो कोई स्वच्छता मिशन भी नहीं है। ग़लती मानते तब तो सोचते सही करने का।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah