काम ही खुशी है, जॉब देने का वादा पूरा करें

मेरे सारे परिचि तों ने पि छले माह डोकलाम में भारत-चीन गति रोध खत्म होने पर गहरी राहत महसूस की थी। हफ्तों तक हवा में युद्ध के बादल मंडराते रहे, जबकि भारत-चीन को अपने इति हास के इस निर्णा यक मौके पर युद्ध बिल्कु ल नहीं चाहि ए। हम में से कई लोग भूटान के प्रति गहरी कृतज्ञता महसूस कर रहे हैं कि वह भारत के साथ खड़ ा रहा और हम अन्य पड़ोसि यों से भी ऐसे ही रिश्तों की शिद् दत से कामना करते हैं। हाल के वर्षों में भारत को बि जली बेचकर भूटान समृद्ध हुआ है।

बेशक, राष्ट्रीय सफलता के पैमाने के रूप में सकल घरेलू उत्पा द (जीडीपी) की जगह सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (जीएनएच) लाकर भूटान दुनि या में मशहूर हुआ है। पहले मुझे इस पर संदेह था कि सरकारें लोगों को प्रसन्नता दे सकती है, क्योंकि प्रसन्नता मुझे 'भीतरी काम' लगता, व्यक्ति गत रवैये तथा घरेलू परिस्थिति यों का मामला। हम में से ज्या दातर लोग नाकाम वि वाह, कृतघ्न बच्चों, प्रमोश न न मि लने यहां तक कि आस्था के अभाव के कारण दुखी हैं। लेकि न, अब मैं अलग तरह से सोच ता हूं। भूटान ने दुनि या को बता दि या है कि ऐसी राज्य-व्यवस्था जो स्व तंत्रता, अच्छा शासन, नौकरी, गुणवत्तापूर्ण स्कू ल व स्वास्थ्य सुवि धाएं और भ्रष्टाच ार से मुक्ति सुनिश्चि त करे, वह अपने लोगों की भलाई के स्त र में व्या पक सुधार ला सकती है। भूटान का आभार मानना होगा कि अब वर्ल ्ड हैपीनेस रिपोर्ट तैयार होती है, जि से संयुक्त राष्ट्र की मान्यता है। 2017 की रिपोर्ट में हमेशा की तरह स्क ैंडीनेवि याई देश वर्ल ्ड रैंकि ंग में सबसे ऊपर हैं। अमेरिका 14वें तो चीन 71वें स्था न पर है। 1990 की तुलना में प्रति व्यक्ति आय पांच गुना बढ़ने के बावजूद चीन में प्रसन्नता का स्त र नहीं बढ़ा है। वजह चीन की सामाजि क सुरक्षा में पतन और बेरोजगारी में हाल में हुई वृद्धि हो सकती है। दुख है कि हम बहुत पीछे 122वें स्था न पर हैं, पाकिस्ता न व नेपाल से भी पीछे।

हमारे पूराने जमींदार मानते थे कि बेकार बैठे रहना मानव की स्वा भावि क अवस्था है। इसके वि परीत मैं मानता हूं कि जुनून के साथ कि या जाने वाला काम प्रसन्नता के लि ए आवश्यक है। वह व्यक्ति भाग्यवान है, जि सके पास ऐसा कोई काम है, जि से करने में उसे खुशी मि लती है और वह उसमें माहि र भी है। मैं मानता हूं कि जीवन का मतलब खुद की खो ज नहीं है बल्कि खुद का निर्मा ण है। फि र कोई कैसे अपने काम और जीवन को उद् देश्यपूर्ण बनाए? इस सवाल के जवाब में मैं कभी- कभी मित्रों के साथ यह थॉट गेम खेलता हूं। मैं उनसे कहता हूं, 'आपको अभी-अभी डॉक्टर ने कहा है कि आपके पास जीने के लि ए तीन महीने शेष हैं। शुरुआती सदमे के बाद आप खुद से पूछते हैं मुझे अपने बचे हुए दि न कैसे बि ताने चाहि ए? क्या आखिरकार मुझे कुछ जोखिम उठाने चाहि ए? क्या मुझे कि सी के प्रति अपने प्रेम का इजहार कर देना चाहि ए, जि ससे मैं बचपन से गोपनीय रूप से प्रेम करता रहा हंू?' मैं जि स तरह ये कुछ माह ज़ि ंदगी जीता हूं, वैसे ही मुझे पूरी ज़िं दगी जीनी चाहि ए। बचपन से ही हमें कड़ी मेहनत करने, स्कू ल में अच्छे अंक लाने और अच्छे कॉलेज में प्रवेश लेने को कहा जाता रहा है। यूनि वर्सि टी में कि सी अज्ञात क्षेत्र मंें खो ज करने की बजाय हम पर 'उपयोगी वि षय' लेने पर जोर डाला जाता है। अंतत: हमें अच्छी -सी नौकरी मि ल जाती है, योग्य जीवनसाथी से वि वाह हो जाता है, हम अच्छे से मकान में रहने लगते हैं और शानदार कार मि ल जाती है। यह प्रक्रिया हम अगली पीढ़ी के साथ दोहराते हैं। फि र 40 पार होने के बाद हम खुद से पूछते हैं, क्या जीवन का अर्थ यही है? हम अगले प्रमोश न के इरादे से लड़खड़ ाते आगे बढ़ते हैं, जबकि ज़ि ंदगी पास से गुजर जाती है। हमने अब तक अधूरी ज़ि ंदगी जी है अौर यह बहुत ही त्रासदीपूर्ण नुकसान है।

जब हम छोटे थे तो कि सी ने हमें ' जीवि का कमाने' और 'जीवन कमाने' का फर्क बताने की जहमत नहीं उठाई। कि सी ने प्रोत्साहि त नहीं कि या कि हम अपना जुनून तलाशें। हमने मानव जाति की महान कि ताबें नहीं पढ़ीं, जि समें अपनी ज़िं दगी में अर्थ पैदा करने के लि ए अन्य मानवों के संघर्ष का वर्ण न है। हममें से बहुत कम महानतम संगीतकार मोजार्ट की तरह भाग्यवान हंै, जि न्हें तीन साल की उम्र में ही संगीत का जुनून मि ल गया। आपको जुनूनी काम मि ल गया है इसका पता इससे चलता है कि जब काम करते हुए आपको लगता ही नहीं कि आप 'काम' कर रहे हैं। अचानक पता चलता है कि शाम हो गई है और आप लंच लेना ही भूल गए हैं। खुशी का मेरा आदर्श , गीता में कृष्ण के कर्मयोग के विच ार के अनुरूप है। कर्म से खुद को अलग करने की बजाय कृष्ण हमें इच्छा रहि त काम यानी निष्का म कर्म की सलाह देते हैं। यानी काम से कोई स्वार्थ , व्यक्ति गत श्रेय अथवा पुरस्का र की कामना न रखना। जब कोई काम में डूब जाता है, तो मैं पाता हूं कि उसका अहंकार गायब हो जाता है। जुनून के साथ, खुद को भुलाकर कि या गया काम बहुत ऊंची गुणवत्ता का होता है, क्योंकि आप अहंकार के कारण भटकते नहीं। जीवन कमाने की यह मेरी रेसि पी है और यही प्रसन्नता का रहस्य है। इस में प्रसन्नता के दो अन्य स्रोत जोड़ ना चाहूंगा : जि स व्यक्ति के साथ आप जीवन जी रहे हैं, उससे प्रेम करें और कुछ अच्छे मि त्र बनाएं। जहां तक मित्रों की बात है तो पंचतत्र भी यही सलाह देता है, 'मि त्र' दो अक्षरों का रत्न है, उदासी, दुख और भय के खिलाफ आश्रय और प्रेम और भरोसे का पात्र। भूटान ने चाहे वर्ल ्ड हैपीनेस रिपोर्ट का विच ार लाया हो पर 2017 की सूच ी में यह 95वें स्था न पर है। पि छले साल के मुकाबले भारत चार पायदान खिसककर 122वें स्था न पर पहुंच गया और जाहि र है यह उस राष्ट्र के लि ए बहुत ही हताशाजनक है, जो 'अच्छे दि न' का इंतजार कर रहा है। भारत की कम रैंकि ंग के लि ए जि म्मे दार है जॉब का अभाव, निच ले स्त र पर भ्रष्टाच ार, देश में व्यवसाय करने में परेशानि यां और कमजोर गुणवत्ता की शिक्षा व स्वास्थ्य सुवि धाएं, जि नमें शिक्षक व डॉक्टर प्राय: नदारद होते हैं। भारत ने समृद्धि में रैंकि ंग सुधारी है, क्योंकि यह दुनि या की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था अों में शुमार हो गया है और समृद्धि फैल रही है।

वर्ल ्ड हैपीनेस रिपोर्ट का एक पूरा अध्या य काम पर समर्पि त है। चू ंकि हममें से ज्या दातर लोग अपना जीवन काम करते हुए बि ताते हैं तो काम ही हमारी प्रसन्नता को आकार देता है। रिपोर्ट बताती है कि सबसे अप्रसन्न लोग वे हैं, जो बेरोजगार हैं। इसीलि ए प्रधानमंत्री मोदी यदि 2019 का चुनाव जीतना चाहते हैं तो उनके लि ए जॉब देने का वादा पूरा करना इतना जरूरी है।
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on October 24, 2017 02:58
No comments have been added yet.


Gurcharan Das's Blog

Gurcharan Das
Gurcharan Das isn't a Goodreads Author (yet), but they do have a blog, so here are some recent posts imported from their feed.
Follow Gurcharan Das's blog with rss.