आई स्टैंड विद…..

दूसरों का झगड़ा-बवाल पूरे मनोयोग से देखने की ललक मनुष्य में कब पैदा हुई, ये आज भी व्यापक शोध का विषय है।

मामला अगर जूतम-पैजार तक चला जाए तो उसे देखने के लिए हर आदमी अपना काम-धाम खूंटी पर क्यों टांग देता है, इस पर भी मनोवैज्ञानिक चुप हैं।

आप कहेंगे, “झगड़ा- बवाल देखने में बड़ा मजा आता है गुरु…”

सच कहूं तो एक जमाने में मुझे भी झगड़ा-बवाल देखने में बड़ा मजा आता था।

बात यहीं कोई सातवीं-आठवीं क्लॉस की होगी।
वही हमेशा की तरह फ़रवरी का रंगीन महीना था।

पुरूवा हवा पूरे मनोयोग से देह को लग रही थी। शरीर नें शरीर के अंदर होने वालों रासायनिक परिवर्तनों से मोहब्बत कर लिया था।

बॉलीवुड से उड़कर मेरे रेडियो में गिरता मोहब्बत का हर नगमा जिगर में ऐसे घुसता जैसे सरसों के खेत में अभी-अभी मोर घुस रहा हो।

बस इसी रोमांटिक माहौल की एक सुबह मैं अपने एक दोस्त के साथ स्कूल जा रहा था। रास्ते में देखा, दो-चार बेरोजगार युवक बड़े ही मनोयोग से सिर नवाकर जमीन में कुछ रोजगार खोज रहें हैं।

लेकिन जमीन ने रोजगार देने से मना कर दिया है और अचानक कुछ ऐसा हुआ है कि चारों ने उठकर ले लात, दे लात, ले चप्पल, दे चप्पल करना शुरू कर दिया है।

मामला जब ले लात और दे लात से भी नहीं निपटा है तो बीच-बीच में एक दूसरे की मां-बहन का तेज-तेज स्मरण करने का फैसला किया गया है।

देखते ही देखते आसमान में जूते और गालियों के बीच मुकाबला हो उठा है।

लेकिन ये क्या ? मामला तो मेरी समझ के बाहर जा रहा है….मैंने दोस्त बबलुआ से पूछा है,

“बबलुआ..!”

“का रे…?”

“ई मार काहें होता ?”

“कुछ न भाई…पियरका शर्टवा वाला बुल्लूका शर्टवा वाला के मार देले बा…देख मजा आवता..”

“मजा आवता… आयं केने आवता ?”

“देख न मजा आवता..”

“कैसे गुरु, कहाँ मजा आवता..!”

“बबलुआ नें फिर कहा, “देख न मजा आवता..”

गुरु, डीह बाबा की कसम…बड़ी देर तक ध्यान से देखा लेकिन मजा कहीं से नहीं आया.. आया तो लाठी और डंडा और उसके साथ दस-बारह लोग.।

देखते ही देखते आसमान में लाठियों नें तड़तड़ाहट के साथ बरसना शुरु कर दिया..मजमा उमड़ पड़ा… बबलुआ नें फिर पूछा.. “बोल ,अब मजा आवता ?”

मैनें कहा, “हं यार, गुरु,अब त बहुत मजा आवता..”

फिर तो बबलुआ नें आंख बंद करके परम सुख की अवस्था में कहा, “अब रुक भाई, स्कूल की ऐसी की तैसी..अब ऊ पियरका शर्टवा वाला बन्दूक लेकर आएगा..फिर और आएगा मजा…।”

मैनें कहा, “भाई, लाठी-बन्दूक का झगड़ा देखने के चक्कर में प्रिंसिपल साहब छड़ी से मारेंगे बे..जल्दी चल…”

“उसनें कहा, कुछ नहीं करेंगे..मैं हूँ न..अब तो मार देखकर ही चला जाएगा।”

उस दिन डेढ़ घण्टा पूरे मनयोग से हमने मार होते हुए देखा। डेढ़ घण्टा ऐसा आनंद बरसा, जिसे शब्दों में व्यक्त करना अभी भी मुश्किल है।

उस दिन पता चला कि उस जमीनी खेल को जुआ कहते हैं और खेलने वाले खिलाड़ियों को जुआड़ी।

मामला बस इतना है कि आज खिलाड़ियों नें हार-जीत का फैसला खेल से नहीं बल्कि लाठी और डंडे से करने का प्रोग्राम बना लिया है।

लेकिन हमारा असली प्रोग्राम तो स्कूल जाने के बाद शुरू होगा।

हम सब स्कूल पहुँचे। प्रधानाचार्य जी नें हम दोनों को गौर से देखा। हम नहीं दिखे तो चश्मा निकाला और फिर देखा…

आखिरकार चश्मे से भी जब हम दोनों ठीक-ठीक दिखाई नही दिए तो उन्होंने गुलाब की छड़ी मंगाई औऱ दस मिनट तक लगातार हम दोनों को ठीक से तब तक देखा, जब तक कि हमारी आंखों से धुँधला न दिखने लगा।

आखिरकार मैनें अपने लाल हो चुके हाथों से लाल हो चुकी पीठ को सहलाते हुए बबलुआ से पूछा…, “का रे मजा आवता ?

बहुत मजा आवता कहने वाले बबलुआ नें आज तक कोई जबाब नहीं दिया है।

बस एक वो दिन और आज का दिन। मैं झगड़ा होते हुए नहीं देख पाता। यहाँ तक कि कोई मुझसे झगड़ा करना भी चाहे तो मैं सरक लेता हूँ, “भाई, किसी और दिन कर लेना, ऑनलाइन कर लेना..अभी मत करो।”

लेकिन इधर देख रहा, ट्विटर बोले तो एक्स खोलते ही माहौल एकदम मजा वाला हो चुका है।

न जानें क्यों ऐसा महसूस हो रहा है कि कुछ लोग ग़ज़ा पट्टी पर बमबारी का मजा ले रहे हैं।

दो प्रेमियों को आई लव यू बोलकर छोड़ देने वाली एक परिचित बेवफा ने अपने स्टेटस में आई स्टैंड विथ इजरायल के साथ लिखा है।

“मार-मार धुंआ-धुआं कर दे..”
बम मारके समतल कर दे…”

जिस लियाकत के अब्बा नें अभी उसकी अम्मी को तलाक दिया है उसनें भी आई स्टैंड विथ फिलिस्तीन का स्टेटस लगाया है।

उधार मांगकर काम चलाने वाले मेरे एक दोस्त नें आई स्टैंड विथ इजरायल के साथ शेयर किया है कि अमरीका नें इजरायल को गोला-बारूद भेज दिया है

मैनें किसी को जबाब नहीं दिया है। सोचता हूँ क्या ही कहूँ… कैसे कहूं कि वो बेवफा की फुआ..तुमने जिस रोहितवा के दिल का धुआं-धुआं करके उसके अरमानों का ग़ज़ा पट्टी कर दिया है, उसका क्या ?

कैसे उस उधारी दोस्त से कहूं कि अबे अमरीका इजरायल को गोला बारूद सब दे देगा लेकिन तुम काम-धाम छोड़कर कुछ दिन यूँ ही खड़े रहे तो पनवाड़ी तुमको पान भी उधार नहीं देगा बे, कुछ काम-धाम कर लो।

लियाकत को कैसे समझाऊं की भाई फिलिस्तीन के साथ खड़े होने के लिए समूचा अरबी जगत है..आपको अभी आपने अम्मी के साथ खड़े होने की ज़रुरत है मियां। लेकिन कैसे ?

कहने से बचता हूँ। शायद सोशल मीडिया नें हम सबको बबलुआ मोड में डाल दिया है।

बहुतों को इजरायल और फिलिस्तीन के बारे में कुछ कुछ नहीं पता..बस, मजा आ रहा है…तो मजा ले रहे हैं।

मैं जानता हूँ…इस साढ़े छह इंच की स्क्रीन नें दुनिया को इतना करीब ला दिया है कि हम सात समन्दर पार की एक छोटी सी घटना से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।

ये तो फिर भी मिडिल ईस्ट की घटना है और एक बड़ी वैश्विक घटना है जो अगर लंबे समय तक चली तो हम सब इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे..

किसी के समर्थन में खड़ा होना बेहद ज़रूरी है.. लेकिन धर्म और इंट्रेस्ट देखकर बस भीड़ में खड़े होना भेड़िया बन जाना है।

इस विकट दौर में जहां जिंदगी रोज हम सबका गजा पट्टी से भी बड़ा इम्तेहान ले रही है…दैनिक सँघर्ष इजरायल की तरह बरस रहा है, वहां किसी के साथ इस दिखावे के लिए खड़े होने से पहले खुद के साथ मजबूती के साथ खड़ा होना सबसे ज्यादा जरूरी है।

वरना आदमी बने रहने की सारी संभावना नष्ट होते देर न लगेगी।

आख़िर दोनों तरफ के रोते-चीखते लोग मजा आने का साधन कैसे हो सकते हैं ? खुद से पूछें, एक विकसित चेतना परपीड़ा का ये सुख कैसे ले सकती है ?

क्या एक मनुष्य के रूप में अभी और विकसित होने की सम्भावनाएं शेष हैं ?

सवाल कठिन है..लेकिन हं ये बहुत सरल है कि
आज इजरायल हो या फिलिस्तीन स्वयं के साथ खड़ा मनुष्य ही पूरी संवेदनशीलता से दूसरों के साथ खड़ा हो सकता है।

सादर..

अतुल
(अपनी खिड़की पर खड़े होकर…)

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Published on October 12, 2023 04:36
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message 1: by Abhishekh (new)

Abhishekh Kushwaha bahut hi behtreeen likha hai aap ne... dil tak pahunchi hai


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